रस निष्पत्ति क्या है ?
रस निष्पत्ति काव्य को पढ़कर या सुनकर और नाटक को देखकर सहृदय स्रोता पाठक या सामाजिक के चित्त में जो लोकोत्तर आनंद उत्पन्न होता है, वही रस है। भरतमुनि को रस सम्प्रदाय का प्रवर्तक माना जाता है।भरतमुनि द्वारा रचित नाट्यशास्त्र में जो रस सूत्र है वह इसप्रकार है- 'विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्ति' अर्थात विभाव, अनुभाव और संचारी भाव(व्यभिचार) भावो के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है।नाट्यशास्त्र में भरतमुनि ने नाटक के मूल तत्वों का विवेचन एवं विश्लेषण किया है।उन्होंने माना है कि रस में आस्वाद करने का गुण होता है जिसके परिणाम स्वरूप हम काव्य में व्याप्त रस को समझ पाते है।भरतमुनि ने माना है कि रस नाटक का वह तत्व होता है जो सहृदय को अस्वाद प्रदान करता है और जिसके आस्वाद से पाठक (दर्शक) हर्षित होता है।डॉ गणपति चंद्रगुप्त के अनुसार, रस एक मिश्रित तत्व है, जिसमे स्थायी भावो के साथ भावो-अनुभावों का अभिनय मिश्रित रहता है। ...