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रस निष्पत्ति क्या है ?

                              रस निष्पत्ति  काव्य को पढ़कर या सुनकर और नाटक को देखकर सहृदय स्रोता पाठक या सामाजिक के चित्त में जो लोकोत्तर आनंद उत्पन्न होता है, वही रस है।            भरतमुनि को रस सम्प्रदाय का प्रवर्तक माना जाता है।भरतमुनि द्वारा रचित नाट्यशास्त्र में जो रस सूत्र है वह इसप्रकार है-  'विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्ति' अर्थात विभाव, अनुभाव और संचारी भाव(व्यभिचार) भावो के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है।नाट्यशास्त्र में भरतमुनि ने नाटक के मूल तत्वों का विवेचन एवं विश्लेषण किया है।उन्होंने माना है कि रस में आस्वाद करने का गुण होता है जिसके परिणाम स्वरूप हम काव्य में व्याप्त रस को समझ पाते है।भरतमुनि ने माना है कि रस नाटक का वह तत्व होता है जो सहृदय को अस्वाद प्रदान करता है और जिसके आस्वाद से पाठक (दर्शक) हर्षित होता है।डॉ गणपति चंद्रगुप्त के अनुसार, रस एक मिश्रित तत्व है, जिसमे स्थायी भावो के साथ भावो-अनुभावों का अभिनय मिश्रित रहता है।     ...

काव्य हेतु क्या है ?

                              काव्य हेतु काव्य हेतु से तात्पर्य काव्य की उत्पत्ति का कारण है। बाबू गुलाबराय के अनुसार 'हेतु' का अभिप्राय उन साधनों सेे है, जो कवि की काव्य रचना में सहायक होते है। काव्य हेतु पर      सर्वप्रथम् 'अग्निपुराण ' में विचार किया गया है।           काव्य हेतु पर विभिन्न आचार्यो के मत इस प्रकार है-        आचार्य भामह का मत-                            इनके अनुसार " उन्होंने कविता के लिए  प्रतिभा के महत्व को असंदिग्ध रूप से उसे स्वीकार किया है।उन्होंने माना है कि गुरु के उपदेश से मन्द बुद्धि व्यक्ति भी शास्त्रो का यथेष्ट (जैसा है) अध्ययन करके शास्त्रज्ञ बन सकता है किन्तु काव्य रचना तो किसी प्रतिभावान आदमी के बस की बात है।प्रतिभा के महत्व को स्वीकार करते हुए भामह ने काव्य के लिए छः साधनों को आवश्यक माना है- 1-सब्द  2-छंद   3...

काव्य प्रयोजन क्या है ?

काव्य प्रयोजन से तात्पर्य काव्य रचना के उद्देश्य से होता है।काव्य के लिखने का उद्देश्य होता है तथा काव्य के पढ़ने का भी उद्देश्य होता है।काव्य प्रयोजन काव्य प्रेरणा से भिन्न होता है क्योंकि काव्य प्रयोजन का आशय काव्य रचना के बाद होने वाले लाभ से होता है।             भरतमुनि  ने काव्य प्रयोजन पर कोई विशेष टिप्पणी नही दी है।लेकिन उन्होंने यह माना है कि दुख,परिश्रम,शोक तथा साधना से परेशान व्यक्ति को शांति प्रदान करना काव्य का प्रयोजन होना चाहिए।साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि काव्य में रस, अर्थ, लोकमंगल की अवधारणा, कांता सम्मुख उपदेश, बुद्धि का विकास करने वाला होना चाहिए।                   आचार्य भामह का मत -आचार्य  भामह ने अपने ग्रन्थ  "काव्यालंकार" में लिखा है कि-उत्तम काव्य का प्रमुख लक्ष्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सिद्धि के साथ ही कला की विलक्षणता का पृथक होना एवम कीर्ति तथा प्रीति का प्रसार करना होना चाहिए।     सूत्र धर्मार्थ काम मोक्षेषु बेचक्षण्यं कलासु च।    करोति ...

दीपशिखा का भावपक्ष

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महादेवी वर्मा छायावाद की एक ऐसी स्तम्भ है जिसे अगर छायावाद से निकाल दिया जाय तो छायावाद के अर्थो में टूटा हुआ बिखराव ही कहा जायेगा।छायावाद में प्रसाद, पंत और निराला के बाद एक ऐसा नाम है जिसे हम छायावाद की मीरा अर्थात महादेवी वर्मा के नाम से जाना जाता है.महादेवी वर्मा ने जिस तरह से छायावाद में सराहनीय योगदान दिया है उसके लिए हिंदी साहित्य उनका सदैव ऋणी रहेगा। महादेवी वर्मा के कुल छ: गीत संग्रह प्रकाशित हुए है जो निम्न है-निहार ,रश्मि, नीरजा,सांध्यगीत, दीपशिखा, संधिनी। महादेवी वर्मा ने स्वयं इस विषय पर लिखा था,"मार्ग चाहे जितना अभ्यस्त रहा, दिशा चाहे जितनी कुहराच्छत्र रही परंतु भटकने, दिग्भ्रान्त होने और चली हुई राह में पग- पग गिनकर पश्चाताप करते हुए लौटने का अभिशाप मुझे नही मिला है।"                दीपशिखा महादेवी वर्मा का पाँचवा गीत संग्रह है, इस संग्रह में सन् 1936 ई० के बाद लिखे गये गीत संग्रहित है, नीरजा और सांध्यगीत में कवयित्री का जिस ज्वाला से परिचय हुआ था, वही ज्वाला दीपशिखा में उसके मत का एक अविच्छिन्न अंग बन गई है ,इसलिए कवयित्री मे...

Tu mera hai

तुने मुझको है बनाया ,तूने मुझको है सवारा जब भी तूने मुझको अकेला है पाया तूने ही मुझको सहारा दिया में जब भी अकेली हो जाती हूं जगत से तन्हा में रह जाती हूं अंधेरे मैं जब मैं खो जाती हूं सबसे जुदा में हो जाती हु तुम तब मेरे पास चले आते हो थाम के मेरा हाथ उजालों में ले आते हो प्यार तुमने इतना मुझको दिया है में तन्हा भी रहकर ना तन्हा रह पाती हूँ तुम जो मेरे साथ हमेसा रहो में दुनिया से भी लड़ जाउंगी पाके तुम्हे में सवर जाउंगी में तेरी होके रह जाउंगी तू ही मेरा ,तू मेरा है मुझको सदा तू प्यारा लगे में तन्हा ही हु पर तन्हा नही में अकेली हु पर अकेली नही पाके तेरा साथ सवर जाती हूं तुझमे में खुद को हमेसा पाती हूँ तू ही मेरा तू मेरा ही है में तो तेरी सिर्फ तेरी हु तू मेरा भोला ,में तेरी भोली तू है मेरा में तेरी हो ली तू ही तो हर जगह ,तू बस ही है तू दिल मे मेरे मेरी धड़कन में है तू जो मेरा साथ देने को हो में दुनिया से भी लड़ सकती हूं मर सकती हूं और मार सकती हूं तू हमेसा मेरे साथ मेरे साथ हो मेरे जीवन की यही आस है जब भी मेरी आंखे बंद हो जाएंगी तेरे ही अंदर में सीमट जाउं...